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http://nopr.niscair.res.in/handle/123456789/10415
Title: | गर्भ निरोधक गोली के पचास वर्ष |
Authors: | मिश्र, अरविन्द गोरे, मनीष मोहन |
Issue Date: | Sep-2010 |
Publisher: | निस्केयर- सी एस आई आर, भारत |
Abstract: | नन्हीं गोली, बड़े गुण यह भी कैसी अजीब बात है कि एक वर्जित फल (सेब) का स्वाद तो चखा आदम और हौवा ने और उस 'गुनाह की सजा भुगत रही हैं उनकी भावी पीढि़याँ जिन्हें अब 'गोलियाँ खानी पड़ रही हैं गोलियाँ गर्भ निरोध की। विगत सदी मई 1960 में अमेरिका के 'फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने एक नये गर्भ निरोधक को हरी झण्डी दे दी जो खायी जाने वाली गोलियों के रूप में थीं, मतलब ''कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स। गभर्निरोधक गोलियों के ईजाद के 50 वर्ष पूरे हो गये हैं। आइये 'वर्जित सेब खाने के गुनाह से अभिशप्त सुरसा रूपी जनसंख्या पर लगाम लगाने को आजमाई गई इन गोलियों का उनके जन्म के 50वें वर्ष में एक जायका (जायजा!) लिया जाय। 1960 में पहली बार इस्तेमाल में आई यह गभर्निरोधक गोली दीगर गोलियों से इस मामले में भिन्न थी कि यह किसी बीमारी में दी जाने वाली गोली नहीं थी। इसका आविष्कार एक पुरातन पन्थी ईसाई ने किया था जो शोध तो कर रहा था बांझपन (Infertility) के कारगर इलाज पर मगर अनजाने इसी पर मुहर लगा बैठा। गर्भ निरोध के पक्षधरों ने इसका पुरजोर स्वागत किया। मगर विरोधियों ने नैतिकता की दुहाई दी। समर्थकों की राय में अनचाहे बच्चों की आशंका से मुक्त दम्पत्ति जहाँ अब सहज दाम्पत्य का आनन्द उठा सकते थे वहीं विरोधियों के मुताविक इस गोली के चलते यौन स्वच्छन्दता और व्यभिचार को बढ़ावा मिलेगा और परिवार टूटेंगे। आज भी दुनियाँ में कई जगहों पर यही सोच विद्यमान है। |
Page(s): | 47 |
URI: | http://hdl.handle.net/123456789/10415 |
ISSN: | 0042-6075 |
Appears in Collections: | VP Vol.59(09) [September 2010] |
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